लक्ष्य नजदीक आने पर जोखिम घटा दें ताकि इनके चूकने का खतरा नहीं रहे. साल में कम से कम एक बार निवेश की समीक्षा जरूर करें और इसे दोबारा बैलेंस करें.
निवेश न शुरू करने के हजार बहाने हो सकते हैं. वहीं, इसे शुरू करने के भी हजार कारण हो सकते हैं. पसंद आप पर निर्भर करती है.
पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) निवेश का लोकप्रिय विकल्प है. पीपीएफ खाते में हर साल कम से कम 500 रुपये डालने पड़ते हैं. तभी पीपीएफ खाता चालू रहता है. 15 साल तक यह काम करना पड़ता है. किसी एक वित्त वर्ष में इसमें डेढ़ लाख रुपये तक निवेश करने की सीमा है. इस निवेश पर सेक्शन 80सी के तहत टैक्स छूट मिलती है. ब्याज आय पर भी कोई टैक्स नहीं लगता है. मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम भी टैक्स के दायरे में नहीं आती है. इतने सारे टैक्स बेनिफिट को देखते हुए लोग अपने बैंक/पोस्ट ऑफिस में पीपीएफ खाता खुलवाते हैं. इसकी मदद से लोग काफी रकम जोड़ लेते हैं. यह अलग बात है कि कई बार लोग किसी वजह से इसमें न्यूनतम निवेश की रकम नहीं डाल पाते हैं. उस स्थिति में खाता इनएक्टिव यानी निष्क्रिय हो जाता है. हालांकि, इससे आपको घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं है. इसे दोबारा आसानी से चालू कराया जा सकता है. यह काम 3 स्टेप्स में हो जाएगा.
लगातार सात महीनों तक कुल निवेश के बाद नवंबर में गोल्ड ईटीएफ कैटेगरी में नेट आउटफ्लो देखने को मिला है. इसकी मुख्य वजह निवेशकों की मुनाफावसूली है.
सिर्फ कुछ एसेट मैनेजर अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड के लिए अपनी पीठ थपथपा सकते हैं. एयूएम के बेहतर आंकड़ों से पता चलता है कि कुछ बड़े आकार के फंडों ने ईएलएसएस, लार्ज एंड मिड कैप, लार्ज कैप और मिड कैप जैसी कैटेगरी में बेहतर प्रदर्शन किया है.
अर्थव्यवस्था खुलने और आर्थिक गतिविधियों के रफ्तार पकड़ने का आईओसी जैसी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को फायदा हुआ है.
पिछले कुछ वर्षों में बेंचमार्क और दूसरी प्रतिद्वंद्वी स्कीमों के मुकाबले फंड का प्रदर्शन कमजोर रहा है. पिछले एक साल में फंड ने 16.95 फीसदी रिटर्न दिया है.
तीसरी तिमाही में सिप्ला के वित्तीय नतीजे अच्छा रहने की उम्मीद है. घरेलू बाजार में दवा के सबसे बड़े 100 ब्रांड में सिप्ला के 8 ब्रांड हैं.
इस इश्यू का करीब 80 फीसदी हिस्सा रिटेल और अमीर निवेशकों के लिए रिजर्व है. इस इश्यू में 29 जनवरी तक निवेश किया जा सकता है.
इनमें केवल उन्हीं निवेशकों को पैसा लगाना चाहिए जो बहुत ज्यादा जोखिम ले सकते हैं और अस्थिरता का सामना करने के लिए तैयार हैं.
इंफोसिस टेक्नोलॉजी का आईपीओ 1993 में आया था. इसमें एक शेयर की कीमत 95 रुपये रखी गई थी. यह आईपीओ पूरी तरह सब्सक्राइब नहीं हो पाया था.
सभी चाहते हैं कि हम सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली स्कीमों को चुनें. यह भी कोशिश होती है कि इसमें जोखिम न उठाना पड़े. ऐसे में हम अक्सर पहले शानदार प्रदर्शन कर चुकी स्कीमों को चुनते हैं.
सेक्टर के नजरिये से बढ़ते डिजिटलीकरण और तमाम इंडस्ट्रीज में अपग्रेडेशन को देखते हुए नई पीढ़ी के कुछ शेयरों को पोर्टफोलियो में शामिल करने के बारे में सोच सकते हैं.
ये एफओएफ इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड स्कीमों में सीधे निवेश करने का मौका देते हैं. इन्हें ऐसे फंड मैनेजर प्रबंधित करते हैं जो मार्केट को अच्छी तरह समझते हैं.
लक्ष्य नजदीक आने पर जोखिम घटा दें ताकि इसके चूकने का खतरा न रहे. साल में कम से कम एक बार निवेश की समीक्षा जरूर करें और पोर्टफोलियो को दोबारा बैलेंस करें.
सेक्शन 80सी के तहत उपलब्ध तमाम विकल्पों में ईएलएसएस फंडों की लॉक-इन अवधि भी सबसे कम तीन साल होती है. लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि आप तीन साल के निवेश नजरिये को ध्यान में रखकर इनमें निवेश करें.
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